मन की स्याही

कविता, कहानी. समीक्षा, आलेख लेकिन व्याकरण मुक्‍त

आँसुओं से बात की है कभी ?

आँसुओं से बात की है कभी ?

मेरा यह आलेख ”आँसुओं से बात की है कभी ?” महामीडिया नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. आप सब भी इसको पढकर अपनी प्रतिक्रिया से मुझे अवश्य अवगत करवायें…

Bhopal गैस त्रासदी- वो रात कभी ख़त्म ही नहीं हुई मेरे लिये…और वो स्वप्न भी…

 

भोपाल में गैस त्रासदी की वो रात जो कई आँखों के लिये कभी ख़त्म नहीं हुई.

उस रात

मैं एक स्वप्न देख रहा था

और अब केवल स्वप्न ही देख सकता हूं

उस रात

कुछ देर जलके ख़ाक हो गई मेरी आँखें और फिर

वो रात कभी ख़त्म ही नहीं हुई मेरे लिये…और वो स्वप्न भी…

आजकल मैं स्वप्न में ठीक वैसे ही चलता हूं

जैसे उन दिनों मुआवज़े की कतारों में चला करता था

ना जाने क्यों एक सुबह की उम्मीद में ?

जबकि वो रात कभी ख़त्म ही नहीं हुई मेरे लिये…और वो स्वप्न भी…

उस स्वप्न में वक्त के साथ मैंने कई और स्वप्न भी देखे

स्वप्न मदद के, इन्साफ़ के, बदलाव के; मगर सच ना हुये

शायद इसलिये कि स्वप्न के सच होने के लिये जागना ज़रूरी है

लेकिन ना मैं जागा, ना ही मुझको सुलाने वाले

सच, वो रात कभी ख़त्म ही नहीं हुई मेरे लिये..और वो स्वप्न भी…

उस रात सारे शहर को एक रिसाव ने डसा था

जख़्म अब सूख चले हैं शायद लेकिन

वो रिसाव अभी भी रुका नहीं है, सूरज भी तो उगा नहीं है

तो क्या वो रात ख़त्म होगी कभी किसी के लिये ?

..और वो स्वप्न  भी…? शायद ?

                                                                              देवेश

क्या खोज सकूंगी स्वयं को ? प्रश्न ये शेष सदा ही रहा …

क्या  खोज सकूंगी स्वयं को  ? प्रश्न ये शेष सदा ही रहा …

देखूं आईना जीवन का खुद को ढूंढू वहाँ

मैं बेटी जन्मी फिर पत्‍नी बनी और फिर माँ

अनजानी सी राहों में मुझ तक पहुंचे वो राह कहाँ ?

क्या  खोज सकूंगी स्वयं को  ? प्रश्न ये शेष सदा ही रहा ...

 मैं हर पल कुछ नया जोड़ती जाती
नये रिश्तों को बस जैसे ओढती जाती

मेरा अपना कुछ भी क्या मुझमें शेष रहा ?

क्या  खोज सकूंगी स्वयं को  ? प्रश्न ये शेष सदा ही रहा …

चाहा  एक साथी जो साथ चले जीवन भर
पाया लेकिन स्वयं को खो देने की कीमत पर

उसके भीतर खुदको ढूँडूं जाने छुपी कहाँ  ?

क्या  खोज सकूंगी स्वयं को  ? प्रश्न ये शेष सदा ही रहा …

 बेटी होकर पहचाने जाना अगर मैं नियत भी जानूँ
मैं हूं बोझ पिता के कन्धों पर आखिर कैसे मानूँ ?

ऐसे ही बोझिल प्रश्नों को मैंने जाने क्यों है सहा ?

क्या  खोज सकूंगी स्वयं को  ? प्रश्न ये शेष सदा ही रहा …

जीवन चुक जायेगा शायद पर क्या वो दिन आयेगा ?
मैं क्या हुं मेरे भीतर, क्या कोई जान मुझे पायेगा ?

या ये यक्ष प्रश्न रहेगा जीवित जब तक रहे जहाँ  ?

क्या  खोज सकूंगी स्वयं को  ? प्रश्न ये शेष सदा ही रहा …

                                                                                  देवेश 

26/11-Mumbai Attack

26/11 Mumbai Attack

खुद को भारतमाता के सपूत  कहने वाले नेताओं को अब सोचना पड़ेगा क्योंकि भारतमाता खुद उनसे कह रही है….
मैं तुम्हे क्या कहूँ तुम मेरे बेटेनहीं हो
जो होते तो मेरी छाती यूँ छलनीहोती ना देख पाते
मेरी घायल देह पर घरोंदे नबनाते
मेरे सच्चे सपूतों की देह पर यूँना सो जाते
मैं तुम्हे क्या कहूँ तुम मेरे बेटे नहीं हो—–
जो होते तो हर जगह तुम्हारी यूँ निंदा ना होती
ज़िन्दगी मौत से यूँ शर्मिंदा ना होती
कुचलते यूँ तुम दहशती सोच को
के सदियों तक कभी जिंदा ना होती
मैं तुम्हे क्या कहूँ तुम मेरे बेटे नहीं हो….
क्योंकि मेरे बेटे मेरी लाज बचाने लड़ गए
होके शहीद कितनों को जिंदा कर गए
मेरे आँचल से दूध नहीं उनका लहू बह रहा है
मेरा दिल तड़पकर तुमसे कह रहा है
मैं तुम्हे क्या कहूँ तुम मेरे बेटे नहीं हो …
जो होते तो … …..

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