Bhopal गैस त्रासदी- वो रात कभी ख़त्म ही नहीं हुई मेरे लिये…और वो स्वप्न भी…
भोपाल में गैस त्रासदी की वो रात जो कई आँखों के लिये कभी ख़त्म नहीं हुई.
उस रात
मैं एक स्वप्न देख रहा था
और अब केवल स्वप्न ही देख सकता हूं
उस रात
कुछ देर जलके ख़ाक हो गई मेरी आँखें और फिर
वो रात कभी ख़त्म ही नहीं हुई मेरे लिये…और वो स्वप्न भी…
आजकल मैं स्वप्न में ठीक वैसे ही चलता हूं
जैसे उन दिनों मुआवज़े की कतारों में चला करता था
ना जाने क्यों एक सुबह की उम्मीद में ?
जबकि वो रात कभी ख़त्म ही नहीं हुई मेरे लिये…और वो स्वप्न भी…
उस स्वप्न में वक्त के साथ मैंने कई और स्वप्न भी देखे
स्वप्न मदद के, इन्साफ़ के, बदलाव के; मगर सच ना हुये
शायद इसलिये कि स्वप्न के सच होने के लिये जागना ज़रूरी है
लेकिन ना मैं जागा, ना ही मुझको सुलाने वाले
सच, वो रात कभी ख़त्म ही नहीं हुई मेरे लिये..और वो स्वप्न भी…
उस रात सारे शहर को एक रिसाव ने डसा था
जख़्म अब सूख चले हैं शायद लेकिन
वो रिसाव अभी भी रुका नहीं है, सूरज भी तो उगा नहीं है
तो क्या वो रात ख़त्म होगी कभी किसी के लिये ?
..और वो स्वप्न भी…? शायद ?
देवेश